ज़िला मंडी, हिमाचल प्रदेश. यहीं, हिमालय के दामन में 7343 फ़ीट की ऊंचाइयों पर एक छोटा और प्यारा सा ओशो ध्यान साधना आश्रम बसा है – ओशोग्राम !

आश्रम क्या है; देवदार के घने पेड़ों से घिरे सेबों के बागीचे में जैसे ओशो की देशना के फूल और ध्यान की खुशबू बिखरी हुई हो. तीन एकड़ धरती के टुकड़े में फैला हुआ आश्रम निकुंज की नीरव शांति में बसे एक गाँव की तरह है. पर्यटकों की गहमागहमी और इंसानी आबादी से दूर हिमालय के एक कोने में बसा यह साधना स्थल आपको स्वयं के करीब जीने का अवसर देता है


हिमालय में ध्यान – साधना का रहस्य सदियों – सदियों से बरकरार है. यहाँ मौन और आनंद की धुन निसर्ग की संगति में दिन – रात सुनी जा सकती है. बस, आँखें बंद करें – और अपने भीतर उतर जाएँ. ओशो की छांव में- ध्यान, मौन और आनंद के इस गाँव में- आपका स्वागत !

Milieu

हिमाचल की ओर बढ़ते हुए हिमालय में जहाँ शहर की हलचल समाप्त हो जाती है और देवदार के घने पेड़ों के साथ खूबसूरत पहाड़ी फूलों की शृंखला शुरू होती है; उन्हीं फूलों और सूर्ख सेबों के बागीचे के बीच ओशो प्रेमियों ने एक गाँव बसाया है – ओशोग्राम।

ऊंचाई - समुद्री सतह से 7343 फ़ीट और फैलाव – आसमान के सफ़ेद बादलों तक. पहाड़ी पगडंडियाँ अब चौड़ी होकर सड़क बन गयी है तो पश्चिमी हिमालय में बसे ओशोग्राम तक जाने वाली सड़क पर लगभग सालों भर मोटर-वाहन से आ सकते हैं. हाँ, हिमालय के इस हिस्से में पर्यटक नहीं के बराबर आते हैं. इंसानी हलचल से दूर यहाँ शांति का साम्राज्य है. यहाँ की ठहरी हुई शांत प्रकृति खुद साधकों के साथ ठहरकर ध्यान और आनंद का रहस्य लोक रचती है. शायद यही वजह है कि साधक सदियों से हिमालय के निशब्द निमंत्रण पाकर यहाँ आते रहे हैं.

 
 

प्रकृति का सान्निध्य 

 

पहाड़ी मौसम हर महीने कुछ खास लेकर आते हैं. गर्मियाँ यहाँ की ठंडक में ठहरकर सुकून पाती हैं. बरसात रुई के फाहे बन उड़ते बादलों और झमाझम वर्षा की आँख मिचौली में मशगूल रहती है. दिन के जितने घंटे, आसमान के उतने रंग. उन दिनों बाग में सूर्ख होते सेबों की खुशबू से ओशोग्राम मदहोश हुआ जाता है. बर्फ की कालीन पर बैठकर शफ़्फ़ाक आसमान देखना हो तो जाड़े में आ जाइए. बर्फीली चोटियों पर फिसलती उगते सूरज की रोशनी का इंद्रधनुषी रंग चाहें तो आँखों से चूम लें या आँखें बंद कर जेहन में क़ैद कर लें. ओशो कहते हैं – साधक ही प्रकृति से प्राप्त सुख भोग पाते हैं; प्रकृति के सानिध्य के सामने सभी सुख अधूरे रहेंगे.

हम यहाँ प्रकृति की संगत में रहते हैं. यहाँ उगाये जाने वाले फलों और सब्जियों में कभी कोई रसायन डाला ही नहीं जाता. जंगल और पहाड़ों में पाये जाने वाले औषधीय पौधे और साक – सब्जियाँ भी हमारी रसोई और भोजन में शामिल होती हैं.

निर्मल , कोमल प्राकृतिक वातावरण, टहलने के लिए जंगलों में मीलों-मील फैली पगडंडियाँ, शुद्धतम भोजन, फिर साधना का सघन मौन और विश्राम- ओशोग्राम का यही अनुभव हमेशा के लिए आपके साथ रह जाएँगे.

ध्यान-साधना की गहराई, गहन मौन और प्रकृति के साथ नर्तन का अनुभव जीने के लिए ओशोग्राम का आमंत्रण स्वीकार करें।

Come, experience it for yourself...